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महक एक किस्सा लापरवाही का

आज किसी काम के सिलसिले में एक गांव में जाना पड़ा। उस घर के एक कमरे को देखते हुए अपनी की हुई एक बेवकूफी याद आ गई। वहां लगाई हुई अगरबत्ती की महक को महसूस करते हुए वो सारी घटना आंखों के आगे घुमने लगी।


पांच साल पहले

उस दिन मामा जी को किसी जरूरी काम से बाहर जाना पड़ा था (तब मामी नहीं आईं थीं ना ब्याह कर) तो उन्होंने मुझे कहा कि पूरे घर में अगरबत्ती घुमा दूं। इतना कह कर वो तो बाहर चले गए और मैं लग गया काम पर। बचपन से हमें यह सिखाया था कि हमेशा तीन अगरबत्तियां एक साथ जलानी चाहिए। एक को पूजा घर में रखना, दूसरी को कमाई वाले कमरे में (कारपेंटर का औजारों वाला कमरा) और तीसरे को रसोई घर में रख दिया करो। बाकी दो अगरबत्तियां तो सही से रख दी थीं लेकिन तीसरे अगरबत्ती (जो काम वाले कमरे में रखी थी)की वजह से मुझे बहुत मार पड़ी। 


हुआ यूं कि जैसे ही मैं अगरबत्ती वहां रख रहा था कि अचानक बाहर घंटी की आवाज सुनाई दी तो मैं तुरंत बाहर निकल गया। मामा जी ने कुछ सामान मंगवाया था। उसी की डिलीवरी वला आया था। सामान‌ रसोईघर में रख कर मैं मज़े से टीवी देखने लगा। उसमें इतना खो गया था कि कुछ होश नहीं रहा। होश तब आया जब कुछ जलने वाली तीखी सी महक नाक में पड़ी। मैं उस महक का पीछा करते हुए काम वाले कमरे में पहुंचा तो देखा कि बूरे वाली एक बोरी(जो उस कनात के नीचे रखी हुई थी जिसपर मैंने अगरबत्ती लगाई थी।) सुलग रही थी क्योंकि वो बाहर जाते हुए वो जलती हुई अगरबत्ती ग़लती से उस बोरी पर गिर पड़ी थी। तभी मामा जी का अशुभ आगमन हुआ।(अशुभ आगमन इस लिए क्यूंकि बाद में दोनों गालों पर मामा जी के हाथों की उंगलियां की चित्रकारी होने वाली थी।) ज्यादा नुकसानदायक बात नहीं थी इसलिए सिर्फ दो तीन थप्पड़ों का ही प्रसाद मिला लेकिन मेरी लापरवाही की आदत कम जरूर हो गई।


समाप्त



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5 Comments

Varsha_Upadhyay

17-Feb-2023 09:37 PM

बेहतरीन

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Mohammed urooj khan

17-Feb-2023 05:36 PM

👌👌👌👌🤭🤭

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